Ahir Regiment Kya Hai? अहीर रेजिमेंट क्या है ? जानिए सेना के इतिहास से जुड़ा सबकुछ ..
- Go My Class
- Apr 15, 2022
- 3 min read
Updated: Jul 24, 2022
अहीर रेजिमेंट क्या है ? क्यों उठ रही है अहीर रेजिमेंट की मांग, क्या है सेना में इसका इतिहास जानिए इससे जुड़ा सब कुछ !
इन दिनों लगातार अलग-अलग स्तर पर भारतीय सेना में अहीर रेजिमेंट की मांग उठ रही है। 15 मार्च को सांसद दीपेन्द्र सिंह हुड्डा ने संसद में अहीर रेजिमेंट की मांग उठाई थी। वहीं मध्यप्रदेश के कांग्रेस नेता अरुण यादव ने भी अहीर रेजिमेंट की मांग की। आखिर क्यों हो रही है बार-बार अहीर रेजिमेंट की मांग और भारतीय सेना में अहीर रेजिमेंट का इतिहास क्या है ?

रेजिमेंट क्या है ? रेजिमेंट से जुड़ा इतिहास ..
भारतीय सेना में अलग-अलग रेजिमेंट है। हालाँकि यह व्यवस्था सिर्फ थल सेना में हीं है। वायु सेना और नौसेना में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। यह एक प्रकार का सैन्य दल होता है जो थल सेना का एक हिस्सा होता है। आपने भी कई नाम सुने होंगे जैसे मसलन-सिख रेजिमेंट, गोरखा रेजिमेंट, राजपूत रेजिमेंट, मराठा रेजिमेंट आदि। यह एक प्रकार से सेना की टुकड़ियां होती हैं। इन सभी टुकड़ियों को मिलाकर पूरी थल सेना बनती है। सेना में रेजिमेंट का बंटवारा ब्रिटिश काल में हीं हुआ था। तब अंग्रेजों ने आवश्यकतानुसार अलग-अलग समूहों में सेना में भर्ती की। कभी यह भर्तियाँ जाति के आधार पर हुई तो कभी समुदाय के आधार पर। तब से इसी आधार पर रेजिमेंट बन गई।
जब अंग्रेज भारत में आए तो वो अपना फ़ौज लेकर नहीं आए थे। व्यापर की शुरुआत करने के बाद अंग्रेज भारत में हिं अपना सेना बनाने लगे और यहीं के लोगों को सेना में भर्ती करने लगे। 1857 की क्रांति के बाद जाति के आधार पर रेजिमेंट का जोर बढ़ने लगा। अंग्रेजों ने उन जातियों को प्रिफरेंस दी जो पहले से युद्ध में हिस्सा लेती आ रही थी। इन्हें मार्शल और नॉन-मार्शल के आधार पर बांटा गया। मार्शल के तौर पर राजपूत, सिख, गोरखा, डोगरा, पठान, बलोच को सेना में शामिल किया गया। इस श्रेणी के लोग लड़ाइयों में हिस्सा लेते थे। अंग्रेज इन सैनिकों का चयन जाति के आधार पर करते थे क्योकि उन्हें पता रहे कि लड़ाई में उनके लिए कौन बेहतर भूमिका निभाएगा।
चलिए अहिरवाल क्षेत्र के बारे में जानते हैं
सबसे पहले ये समझी कि अहीर शब्द कहाँ से आया। दरअसल, हरियाणा के दक्षिणी जिले रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ और गुरुग्राम के पुरे क्षेत्र को अहिरवाल कहा जाता है। इसका सम्बन्ध राजा राव तुलाराम से है जो 1857 की क्रांति के अहीर नायक थे। यह रेवाड़ी स्थित रामपुरा रियासत के राजा थे। अहिरवाल की भूमि पर अंग्रेजों से मुकाबला करने वाले राजा राव को क्रांति का महानायक कहा जाता है। इस क्षेत्र में बहुत समय से अहीर रेजिमेंट की मांग हो रही है। जिन राज्यों में अहीर आबादी ज्यादा है वहां यह मांग उठती रहती है।
वो रेजांग ला की लड़ाई जिसमें 114 अहीर जांबाज सैनिक थे।
18 नवंबर 1962 में रेजांग ला की लड़ाई में हरियाणा के जांबाज अहीर सैनिक कमी बहादुरी की खबर मिलने की बाद अहीर सैनिक पहली बार राष्ट्रिय स्तर पर चर्चा में आए। आज भी उन 117 अहीरों के शौर्य और बलिदान को याद किया जाता है। उस समय 17 हजार फीट की उच्चाई पर कुमाऊँ रेजिमेंट की 13 वीं बटालियन की C कंपनी के ज्यादातर सैनिक चीनी सैनिकों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे लेकिन दुश्मन को आगे नहीं बढ़ने दिया। वे तमाम कोशिशों के बाद भी रेजांगला चौकी पर कब्ज़ा नहीं कर सके और चुशूल में आगे बढ़ने का उनका सपना चकनाचूर हो गया। इस लड़ाई में 120 सैनिकों ने चीन के 400 सैनिकों को मार गिराया था। वहीं 117 जवान शहीद हो गए थे जिसमें 114 अहीर थे।
संसद में उठ रहा है अहीर रेजिमेंट की मांग
यूपी-बिहार, हरियाणा और महाराष्ट्र में भी अहीरों की अच्छी आबादी है और राजनीतिक रूप से उनका भी दबदबा है। लालू यादव हों या अखिलेश यादव अहीर रेजिमेंट की मांग का समर्थन कर चुके हैं। हाल हीं में कांग्रेस के सांसद दीपेन्द्र सिंह हुड्डा राज्यसभा में अहीर रेजिमेंट का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि 1857 की क्रांति हो या फिर दूसरा विश्व युद्ध, यदुवंशी शौर्य किसी परिचय का मोहताज नहीं है। साथ हिं उन्होंने कहा कि दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान तक फैले यदुवंशियों ने इतिहास में कई बार सीमाओं की रक्षा करते हुए अपना बलिदान दिया है। यदुवंशियों को सम्मान देने के लिए अहीर रेजिमेंट की स्थापना से बेहतर विकल्प और कुछ नहीं हो सकता है।
Comments