Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 5 कवित्त
- Go My Class
- Feb 21
- 12 min read
Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 5 कवित्त
कवित्त वस्तुनिष्ठ प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ
कवि भूषण कविता शिवाजी महाराज Bihar Board Class 12th प्रश्न 1.भूषण की लिखी कविता कौन–सी है?(क) पद(ख) छप्पय(ग) कवित्त(घ) पुत्र–वियोगउत्तर-(ग)
Kavi Bhushan Shivaji Maharaj Kavita Bihar Board Class 12th प्रश्न 2.शिवराज भूषण किसकी कृति है?(क) भूषण(ख) देव(ग) बिहारी(घ) मतिरामउत्तर-(क)
Kavi Bhushan Poems On Shivaji Maharaj Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.‘भूषण’ को यह उपनाम किस राजा ने दिया था?(क) राजा जय सिंह ने(ख) चित्रकूट के सोलंकी राजा रूद्रशाह ने(ग) राजामधुकर शाह ने(घ) राजा छत्रसाल नेउत्तर-(ख)
Kavi Bhushan Ne Kis Rajya Ki Prashansa Mein Kavita Likhi प्रश्न 4.भूषण किस धारा के कवि है?(क) रीतिमुक्त(ख) रीति सिद्ध(ग) रीतिबद्ध(घ) इनमें से कोई नहींउत्तर-(क)
Kavi Bhushan Poem On Shivaji Maharaj Bihar Board Class 12th प्रश्न 5.शिवाजी की वीरता का बखान किस कृति में भूषण कवि ने किया है?(क) भूषण हजारा(ख) छत्रसाल–दशक(ग) शिवा बावनी(घ) भूषण उल्लासउत्तर-(ग)
Hindi Book Class 12 Bihar Board 100 Marks Pdf Bihar Board प्रश्न 6.भूषण के दो नायक कौन–कौन हैं?(क) छात्रपति शिवाजी और छत्रसाल(ख) नंद और शकटार(ग) चन्द्रगुप्त और चाणक्य(घ) अशोक और कुणालउत्तर-(क)
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
12 Hindi Book Bihar Board प्रश्न 1.भूषण रीतिकाल के……… धारा के कवि हैं।उत्तर-रीतिमुक्त
12th Hindi Book Bihar Board प्रश्न 2.भूषण जातीय स्वाभिमान, आत्मगौरव, शौर्य एवं……… के कवि हैं।उत्तर-पराक्रम
Bihar Board 12 Hindi Book प्रश्न 3.भूषण एक रीतिबद्ध………….. कवि ही थे।उत्तर-आचार्य
प्रश्न 4.इंद्र जिमि जंभ पर बाड़व ज्यौं अंभ पर,……….. संदर्भ पर रघुकुल राज है।उत्तर-रावन
प्रश्न 5.पौन बारिबाह पर……….. रतिनाह पर, ज्यौं सहस्रबाहु पर राम द्विजराज हैं।उत्तर-संभु
प्रश्न 6.तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर,यौं मलेच्छा………. बंस पर सेर सिवराज हैं।उत्तर-बंस
कवित्त अति लघु उत्तरीय प्रश्न।
प्रश्न 1.महाकवि भूषण हिन्दी साहित्य के लिए किस काल के कवि थे?.उत्तर-रीतिकाल के।
प्रश्न 2.भूषण ने मुख्यतः किस भाषा में रचना की?उत्तर-ब्रजभाषा में।
प्रश्न 3.भूषण ने समुदाग्नि से किसकी तुलना की है?उत्तर-शिवाजी की।
प्रश्न 4.छत्रसाल की तलवार ने कौन–सा रूप धारण कर रखा है?उत्तर-रौद्र रूप।
कवित्त पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.शिवाजी की तुलना भूषण ने किन–किन से की है?।उत्तर-प्रस्तुत कविता में महाकवि भूषण ने छत्रपति महाराज शिवाजी की तुलना इन्द्र, वाड़बाग्नि (समुद्र की आग), श्रीराम, पवन, शिव, परशुराम, जंगल की आग, शेर (चीता) प्रकाश अर्थात् सूर्य और कृष्ण से की है।
प्रश्न 2.शिवाजी की तुलना भूषण ने मृगराज से क्यों की है?उत्तर-महाकवि भूषण ने अपने कवित्त में छत्रपति शिवाजीकी महिमा का गुणगान किया है। महाराज शिवाजी की तुलना कवि ने इन्द्र, समुद्र की आग, श्रीरामचन्द्रजी, पवन, शिव, परशुर.’ जंगल की आग, शेर (चीता), प्रकाश यानि सूर्य और कृष्ण से की है। छत्रपति शिवाजी के व्यक्तित्व में उपरोक्त सभी देवताओं के गुण विराजमान थे। जैसे उपरोक्त सभी अंधकार, अराजकता, दंभ अत्याचार को दूर करने में सफल हैं, ठीक उसी प्रकार मृगराज अर्थात् शेर के रूप में महाराज शिवाजी मलेच्छ वंश के औरंगजेब से लोहा ले रहे हैं।
वे अत्याचार और शोषण–दमन के विरुद्ध लोकहित के लिए संघर्ष कर रहे हैं। छत्रपति का व्यक्तित्व एक प्रखर राष्ट्रवीर, राष्ट्रचिन्तक, सच्चे कर्मवीर के रूप में हमारे सामने दृष्टिगत होता है। जिस प्रकार इन्द्र द्वारा यम का, वाड़वाग्नि द्वारा जल का, और घमंडी रावण का दमन श्रीराम करते हैं ठीक उसी प्रकार शिवाजी का भी व्यक्तित्व है।
पवन जैसे बादलों को तितर–बितर कर देता है, शिव के वश में कामदेव हो जाते हैं, सहस्रार्जुन पर परशुराम की विजय होती है, दावाग्नि जंगल के वृक्षों की डालियों को जला देती है; जैसे चीता (शेर) मृग झुंडों पर धावा बोलता है ठीक हाथी पर सवार हमारे छत्रपति शिवाजी मृगराज की तरह सुशोभित हो रहे हैं। जिस प्रकार सूर्य प्रकाश से अंधकार का साम्राज्य विनष्ट हो जाता है, कृष्ण द्वारा कंस पराजित होता है, ठीक उसी तरह औरंगजेब पर हमारे छत्रपति भारी पड़ रहे हैं। हमारे इन देवताओं एवं प्रकृति के अन्य जीवों की तरह गुण संपन्न शिवाजी का व्यक्तित्व है। वे देशभक्ति और न्याय के प्रति अटूट आस्था रखनेवाले भूषण के महानायक हैं। उनके व्यक्तित्व और शीर्ष के आगे शत्रु फीके पड़ गए हैं।
महावीर शिवाजी भूषण के राष्ट्रनायक हैं। इनके व्यक्तित्व के सभी पक्षों को कवि ने अपनी कविताओं में उद्घाटित किया है। छत्रपति शिवाजी को उनकी धीरता, वीरता और न्यायोचित सद्गुणों के कारण ही मृगराज के रूप में चित्रित किया है।
प्रश्न 3.छत्रसाल की तलवार कैसी है? वर्णन कीजिए।उत्तर-प्रस्तुत कविता में महाराजा छत्रसाल की तलवार सूर्य की किरणों के समान प्रखर और प्रचण्ड है। उनकी तलवार की भयंकरता से शत्रु दल थर्रा उठते हैं।
उनकी तलवार युद्धभूमि में प्रलयकारी सूर्य की किरणों की तरह म्यान से निकलती है। वह विशाल हाथियों के झुण्ड को क्षणभर में काट–काटकर समाप्त कर देती हैं। हाथियों का झुण्ड गहन अंधकार की तरह प्रतीत होता है। जिस प्रकार सूर्य किरणों के समक्ष अंधकार का साम्राज्य समाप्त हो जाता है ठीक उसी प्रकार तलवार की तेज के आगे अंधकार रूपी हाथियों का समूह भी मृत्यु को प्राप्त करता है।
छत्रसाल की तलवार ऐसी नागिन की तरह है जो शत्रुओं के गले में लिपट जाते हैं और मुण्डों की भीड़ लगा देती है, लगता है कि रूद्रदेव को रिझाने के लिए ऐसा कर रही हैं।
महाकवि, भूषण छत्रसाल की वीरता से मुग्ध होकर कहते हैं कि हे बलिष्ठ और विशाल भुजा वाले महाराज छत्रसाल मैं आपकी तलवार का गुणगान कहाँ तक करूँ? आपकी तलवार शत्रु–योद्धाओं के कटक जाल को काट–काटकर रणचण्डी की तरह किलकारी भरती हुई काल को भोजन कराती है।
प्रश्न 4.नीचे लिखे अवतरणों का अर्थ स्पष्ट करें(क) लागति लपकि कंठ बैरिन के नागिनि सी,रुदहि रिझावै दै दै मुंडन की माल को।उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ भूषण की काव्यकृति छत्रसाल–दशक से संकलित की गयी कविताओं में से ली गयी है। इन पंक्तियों में महाकवि भूषण ने छत्रसाल की तलवार की प्रशंसा की है।
प्स छत्रसाल की तलवार नागिन के समान है। वह शत्रुओं के गर्दन से लपटकर जा मिलती है और देखते–देखते नरमुंडों की ढेर लगा देती है। मानों भगवान शिव को रिझा रही हो। इस प्रकार छत्रसाल की तलवार की महिमा गान कवि ने किया है। छत्रसाल की तलवार का कमाल प्रशंसा योग्य है। इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है। भयंकर रूप के चित्रण के कारण रौद्र रस का प्रयोग झलकता है।
(ख) प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि,कालिका सी किलकि कलेऊ देति काल को।उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ भूषण कवि की कविता पुस्तक छत्रसाल–दशक द्वारा ली गयी है जो पाठ्यपुस्तक में संकलित है। इस अवतरण में वीर रस के प्रसिद्ध कवि भूषण ने महाराजा छत्रसाल की तलवार का गुणगान किया है। इनकी तलवार की क्या–क्या विशेषताएँ हैं, आगे देखिए।
इन पंक्तियों में कवि के कहने का भाव यह है कि छत्रसाल बुन्देला की तलवार इतने तेज धारवाली है कि पलभर में ही शत्रुओं को गाजर–मूली की तरह काट–काटकर समाप्त कर देती है। साथ ही काल को भोजन भी प्रदान करती है। यह तलवार साक्षात् कालिका माता के समान है। वैसा ही रौद्र रूप छत्रसाल की तलवार भी धारण कर लेती है।
यहाँ अनुप्रास और उपमा अलंकार की छटा निराली है।
प्रश्न 5.भूषण रीतिकाल की किस धारा के कवि हैं, वे अन्य रीतिकालीन कवियों से कैसे विशिष्ट हैं?उत्तर-महाकवि भूषण रीतिकाल के एक प्रमुख कवि हैं, किन्तु इन्होंने रीति–निरूपण में शृंगारिक कविताओं का सृजन किया। उन्होंने अलंकारिकता का प्रयोग अपनी कविताओं में अत्यधिक किया है।
रीति काव्य के कवियों की प्रवृत्तियों के आधार पर दो भागों में बाँटा जा सकता है–(i) मुख्य प्रवृत्तियाँ–(क) रीति निपुंज तथा(ख) शृंगारिकता।
(ii) गौण प्रवृत्तियाँ–(क) राज प्रशस्ति (वीर काव्य)(ख) भक्ति तथा(ग) नीति।
(क) रीति–निरूपण के आधार पर रीति कवियों के दो वर्ग हैं–(i) सर्वांग निरूपण तथा(ii) विशिष्टांग निरूपक।
(i) सर्वांग निरूपण : काव्य के समस्त अंगों पर विवेचन किया है। इसके तीन भेद हैं–(a) समस्त रसों के निरूपक,(b) शृंगार रस निरूपक(c) श्रृंगार रस के आलंबन नायक–नायिकाओं के भेदोपभेदों के निरूपक।
अलंकार निरूपक आचार्यों में मतिराम, भूषण, गोप, रघुनाथ, दलपति आदि और भी कुछ कवि आते हैं।
इस प्रकार भूषण श्रृंगार रस के आलंबन नायक–नायिकाओं के भेदोपभेदों के निरूपक रीति काव्य परंपरा के कवि हैं। अलंकार निरूपक रीति के रूप में भूषण को ख्याति प्राप्त है। महाकवि भूषण का आर्विभाव रीतिकाल में हुआ। उस समय की समस्त कविताओं का विषय था–नख–शिख वर्णन और नायिका भेद। अपने आश्रयदाताओं को प्रसन्न करना और वाहवाही लूटना उनकी कविता का उद्देश्य था। अतः तब कविता स्वाभाविक उद्गार के रूप में नहीं होती थी, वरन् धनोपार्जन के साधन के रूप में थी।
ऐसे ही समय में महाकवि भूषण का आविर्भाव हुआ। परन्तु उनका उद्देश्य कुछ और था। अतएव देश की करुण पुकार से उनका अंतर्मन गुंजरित हुआ। फलस्वरूप उनके काव्य में श्रृंगार की धारा प्रवाहित नहीं हुई वरन् वीर रस की धारा फूट पड़ी। ऐसी परिस्थिति में कहा जाएगा कि वे तत्कालीन काव्यधारा के विरुद्ध प्रतीत होते हैं। परन्तु उनकी महत्त सुरक्षित कही जाएगी। इसका एकमात्र कारण यही है कि उनकी कविता कवि–कीर्ति संबंधी एक अविचल सत्य का दृष्टांत है।
आविर्भाव के विचार से वे रीतिकाल में आते हैं। किन्तु विषय के दृष्टिकोण से उन्हें वीरगाथा–काल में ही मानना चाहिए। कुछ लोग उन्हें चाटुकार जाटों की श्रेणी में रखते हैं। किन्तु भूषण के प्रति यह धीर अन्याय होगा। इसका कारण यह है कि श्रृंगार प्रधानकाल में भी वीर रस की उद्भावना द्वारा जन जीवन में जागरण का मंत्र फूंकना उनके स्वतंत्र हृदय का परिचायक है। उनकी काव्य की रचना देश की नब्ज पहचान कर हुई है। निःसन्देह उनकी रचना युग–परिवर्तन का आह्वान करती है।।
भूषण कई राजाओं के यहाँ गए किन्तु कहीं भी उनका मन नहीं लगा। उनका मन यदि कहीं लगा तो एकमात्र छत्रपति शिवाजी के दरबार में ही। ऐसे तो छत्रसाल के यहाँ भी उन्हें सम्मान मिला था। उसी कारण में उन्होंने लिखा था–”शिवा को बखानों कि बखानों को छत्रसाल को।”
भूषण का काव्य वीर काव्य की परंपरा में आता है। यहाँ ओज की प्रधानता है। भूषण के काव्य के महानायक हैं–छत्रपति शिवाजी महाराज।
रीतिकालीन कवियों की तरह भूषण खुशामदी कविं नहीं बल्कि राष्ट्रीयता के प्रबल पक्षधर हैं। इनकी कविताओं में भारतीयता, हिन्दुत्व और लोक मंगल की कामना है। इसी कारण इन्हें हिन्दू राष्ट्र का जातीय कवि भी कहा जाता है।
इनकी तीन प्रमुख रचनाएँ हैं–
शिवराज भूषण,
शिव बावनी
छत्रसाल दशक।
भूषण की काव्य भाषा ब्रजभाषा है। इसे ब्रजभाषा नहीं कह सकते हैं। विभिन्न भाषाओं के शब्दों के मेल–जोल से इसे खिचड़ी भाषा भी कह सकते हैं। शब्दों को तोड़–मरोड़ कर अत्यधिक प्रयोग किया है। जिसके कारण उनका स्वाभाविक रूप बिगड़ गया है। मित्र बन्धुओं ने इसलिए कहा है कि भूषण की भाषा सशक्त, भाव–प्रकाशन में प्रभावयुक्त और सुव्यवस्थित है। देशज, विदेशज, तद्भव और तत्सम रूपों का प्रयोग धड़ल्ले से किया है।
ये एक सफल कवि के रूप में हिन्दी जगत में समादृत है। इनकी कविताओं में लोकोक्तियों तथा मुहावरों का प्रयोग भी हआ है। ओज गुण संपन्न इनकी काव्य कृतियाँ हिन्दी की धरोहर है। भूषण की कविता में सुमेरु डोल रहा है। सागर मथा जा रहा है। भूषण और शिवाजी दोनों ही व्यक्ति नहीं है बल्कि भाव के क्षेत्र में जो कविवर भूषण है, वही रणक्षेत्र में शिवाजी का रूप धारण कर लेते हैं।
शिवराज भूषण में 105 अलंकारों का प्रयोग हुआ जिसमें 99 अक्कर, 4 शब्दालंकार तथा शेष दो चित्र ओर संकर नामक अलंकार है। विवेचन क्रम एवं लक्षणों को देखने से प्रतीत होता है कि ग्रन्थाकार जयदेव के चन्द्रलोक और मतिराम कालालितलाम का ही आश्रम लिया है।
आचार्य कर्म में भूषण को कुछ लोग भले ही असफल कवि के रूप में मानते हैं किन्तु कवि–कर्म में उतने ही सफल हुए हैं। विषय के अनुरूप ओजपूर्ण वाणी का प्रयोग इनमें सर्वत्र मिलता है। भूषण की दृष्टि व्यापक थी। पूरे राष्ट्र को एक इकाई के रूप में वे देखते थे। भूषण के काव्य में सुव्यक्त होनेवाली राष्ट्रीयता की यह चेतना रीतिकालीन साहित्य के उपलब्ध साक्ष्यों में सर्वत्र विद्यमान है।
प्रश्न 6.आपके अनुसार दोनों छंदों में अधिक प्रभावी कौन है और क्यों?उत्तर-हमारे पाठ्य–पुस्तक दिगंत भाग–2 में संकलित के दोनों कवित्त छंदों में अधिक प्रभावकारी प्रथम छंद है। इसमें महाकवि भूषण ने राष्ट्रनायक छत्रपति शिवाजी के विरोचित गुणों का गुणगान किया है। कवि ने अपने कवित्त में छत्रपति शिवाजी के व्यक्तित्व के गुणों की तुलना अनेक लोगों से करते हुए लोकमानस में उन्हें महिमा मंडित करने का काम किया है।
कवि ने कथन को प्रभावकारी बनाने के लिए अनुप्रास और उपमा अलंकार का प्रयोग कर अपनी कशलता का परिचय दिया है। वीर रस में रचित इस कवित्त में अनेक प्रसंगों की तुलना करते हुए शिवाजी के जीवन से तालमेल बैठाते हुए एक सच्चे राष्ट्रवीर के गुणों का बखान किया है। इन्द्र, राम, कृष्ण, परशुराम, शेर, कृष्ण, पवन आदि के गुण कर्म और गुण धर्म से शिवाजी के व्यक्तित्व की तुलना की गयी है। वीर शिवाजी शेरों के शेर हैं, जिन्होंने अपने अभियान में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
भाषा में ओजस्विता, शब्द प्रयोग में सूक्ष्मता कथन के प्रस्तुतीकरण की दक्षता भूषण के कवि गुण हैं। अनेक भाषाओं के ठेठ और तत्सम, तद्भव शब्दों का भी उन्होंने प्रयोग किया है।
कवित्त भाषा की बात।
प्रश्न 1.प्रथम छंद में कौन सा रस है? उसका स्थाई भाव क्या है?उत्तर-प्रथम छंद में वीर रस है उसका स्थायी भाव उत्साह है।
प्रश्न 2.प्रथम छंद का काव्य गुण क्या है?उत्तर-प्रथम छंद का काव्य गुण ओज गुण है।
प्रश्न 3.द्वितीय छंद में किस रस की अभिव्यंजना हुई है? उस रस का स्थाई भाव क्या है?उत्तर-द्वितीय छंद में रौद्र रस की अभिव्यंजना हुई है.। रौद्र रस का स्थाई भाव क्रोध है।
प्रश्न 4.प्रथम छंद में किन अलंकारों का प्रयोग हुआ है?उत्तर-प्रथम छंद में अनुप्रास, उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 5.‘लागति लपकि कंठ बैरिन के नागिनी सी’–इनमें कौन–सा अलंकार है?उत्तर-लागति लपकि कंत बैरिन के नागिनी सी’ में उपमा अलंकार है।
प्रश्न 6.दूसरे छंद से अनुप्रास अलंकार के उदाहरण चुनें।.उत्तर-दूसरे छंद से अनुप्रास अलंकार के उदाहरण निम्नलिखित हैं–तम–तोम मैं, म्यान ते मयूखें, लागति लपकि, रुदहि रिझावै, मुंडन की माल, छितिपाल छत्रसाल, कटक कटीले केते काटि काटि, किलकि कलेऊ आदि।
प्रश्न 7.निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें भानु, रुद्र, चीता, इन्द, तम, तेज, मृग, काल, कंठ, भटउत्तर-
भानु–सूर्य, रवि, भास्कर, दिवाकर
रुद्र–शंकर, त्रिपुरारि, त्रिलोचन
चीता–बाघ
इन्द्र–सुरेन्द्र, देवेन्द्र, सुरपति, देवेश
तम–अंधकार, अँधेरा, तम, तिमिर
तेज–प्रताप, महिमा, शूरता
मृग–हिरण, तीव्रधावक
काल–समय, यमराज, शिव, मुहूर्त
कंठ–गला भट–योद्धा, रणवीर
प्रश्न 8.‘महाबाहु’ में ‘महा’ उपसर्ग है, इस उपसर्ग से पाँच अन्य शब्द बनाएँ।उत्तर-महाबली, महान, महात्मा, महामना, महाराज, महाकाल, महाशय।।
प्रश्न 9.‘छितिपाल’ में पाल प्रत्यय है, इस प्रत्यय से युक्त छह अन्य शब्द बनाएँ।उत्तर-द्वारपाल, राज्यपाल, रामपाल, सतपाल, जयपाल, धर्मपाल, गोपाल।
कवित्त कवि परिचय भूषण (1613–1715)
महान् कवि भूषण के जन्म–मृत्यु के बारे में विद्वानों में मतभेद है। उनका जन्म 1613 में तिकवाँपुर, कानपुर उत्तरप्रदेश माना जाता है। उनका वास्तविक नाम घनश्याम था। ‘भूषण’ उनकी उपाधि है जो चित्रकूट के सोलंकी राजा रुद्र ने उन्हें दी। ये कानपुर के पास तिकवाँपुर के रहनेवाले थे और जाति के कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम रत्नाकर त्रिपाठी था। भूषण को रीतिकाल के प्रसिद्ध कवियों–चिन्तामणि तथा मतिराम का भाई माना जाता है। किन्तु कई विद्वानों का इसमें संदेह है। भूषण कई राजदरबारों में गये, किन्तु उन्हें सबसे अधिक सन्तुष्टि शिवाजी के दरबार में मिली। इन्हें शिवाजी के पुत्र शाहूजी एवं पन्ना के बुदेला राजा छत्रसाल के दरबार में रहने का सौभाग्य मिला। सन् 1715 में उनका देहावसान हुआ।
भूषण की तीन प्रसिद्ध रचनाएँ हैं––शिवराज भूषण, शिवाबावनी तथा छत्रसाल दशक। इनमें “शिवराज भूषण’ उनकी कीर्ति का आधार है। भूषण की वाणी में ओज और वीरता के भाव व्यक्त हुए हैं। उन्होंने अपने आश्रयदाताओं–शिवाजी तथा छत्रसाल की प्रशंसा में बहुत सुन्दर कवित्त लिखे हैं। भूषण की भाषा ओजमयी है। उनके शब्द सैनिकों की भाँति दौड़ते–भागते प्रतीत होते हैं। शब्दों की ध्वनि को सुनकर ही लगता है कि हाथी–घोड़े दौड़ रहे हैं।
भूषण ने अपनी कविता में अलंकारों का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है। अनुप्रास तो उनकी हर पंक्ति में बिखरा पड़ा है। रूपक, उपमा, यमक के उदाहरण भी देखते बनते हैं।
कविता का भावार्थ 1.इन्द्र जिमि जंभ पर बाड़व ज्यों अंभ पर,रावन संदभ पर रघुकुल राज है।पौन बारिबाह पर संभु रतिनाह पर,ज्यौं सहस्रबाहु पर सेर द्विवराज है।दावा दुम–दंड पर चीता मृग–झुंड पर,भूषण बितुंड पर जैसे मृगराज है।तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर,ज्यों मलेच्छ बंस पर सेर सिवराज है।।
प्रसंग–प्रस्तुत कवित्त कवि भूषण द्वारा रचित है। इसमें शिवाजी वीरता का बखना किया गया है।
व्याख्या–शिवाजी के शौन का बखना करते हुए कवि भूषण कहते हैं कि शिवाजी का मलेच्छ वंश पर उसी प्रकार राज है जिस प्रकार इन्द्र का यम पर वाडवाग्नि अर्थात् समुद्र की अग्नि का पानी पर तथा राम का दंभ से भरे रावण पर है। अर्थात् शिवाजी को इन्द्र, समुद्राग्नि व राम के समान बताकर उनका शौर्य वर्णन किया गया है।
जिस प्रकार जंगी की आग का पेड़ों के झुंड पर तथा चीता मृगों के झुंड पर तथा हाथी. के ऊपर सिंह का राज है। उसी प्रकार छत्रपति शिवाजी दवाग्नि के समान विशाल, हाथी के समान बलशाली तथा चीते के समान शौर्यवान है।
जैसे उजाले का अंधेरे पर तथा कृष्ण का कंस पर राज है उसी प्रकार छत्रपति शिवाजी का मलेच्छ वंश पर राज है अर्थात् वे अत्यन्त बलशाली है।
बिशेष–
छत्रपति शिवाजी के शौर्य का विभिन्न उपमानों द्वारा वर्णन किया गया है।
ब्रजभाषा का सुन्दर प्रयोग द्रष्टव्य है।
विषयानुरूप शब्द चयन है।
ओज गुण विद्यमान है।।
रघुकुल राज, दावा द्रुम–दंड, तेज तम, ‘सेर सिवराज’ में अनुप्रास अलंकार है।
2. निकसत म्यान ते मयूबँ, प्रल–भानु कैसी,फारै तम–तोम से गयंदन के जाल को।लागति लपकि कंठ बैरिन के नागिनि सी,रुदहि रिझावै दै दै मुंडन की माल को।।लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली,कहाँ लौं बखान करौं तेरी करवाल को।प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि,कालिका सी किलकि कलेऊ देति काल को।
प्रसंग–प्रस्तुत कवित्त कवि भूषण द्वारा रचित है। इसमें छत्रसाल की वीरता का वर्णन किया गया है।
व्याख्या–कवि भूषण ने छत्रसाल की वीरता का वर्णन करते हुए कहा है कि युद्धभूमि में छत्रसाल की तलवार म्यान से इस प्रकार निकली जैसे प्रलय के सूर्य की तीखी (तेज) किरणें निकलती हैं। यह तलवार हाथी के ऊपर पड़ी हुई लोहे की जालियों को इस प्रकार काट रही है जैसे अंधेरे को चीर कर सूर्य निकल रहा है। उनकी तलवार रूपी नागिन शत्रुओं के गले में मृत्यु के समान लिपट रही है।
वह मृत्यु के देवता शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शत्रुओं के सिरों की माला को अर्पित कर रही है। अर्थात् युद्धभूमि में शत्रुओं के सिरों को धड़ से अलग कर रही है। राजा छितिपाल के शक्तिशाली पुत्र छत्रसाल की तलवार का वर्णन कहाँ तक करूँ अर्थात् यह अत्यन्त प्रलयंकारी है। वह शत्रुओं के समूह के समह नष्ट कर रही है। वह शत्रुओं को काटकर कालिका देवी को सुबह का नाश्ता प्रदान कर रही है। अर्थात् वह मृत्यु की देवी को प्रसन्न करने के लिए शत्रुओं का संहार कर रही है।
विशेष–
छत्रसाल के शौर्य का वर्णन किया गया है।
ब्रजभाषा का सुन्दर प्रयोग है।
विषयानुसार भाषा का चयन है।
पद्यांश में रौद्र रस तथा ओज गुण निहित है।
नागिन सी’, ‘कालिका सी किलिक में’ उपमा अलंकार पूरे पद्यांश में अनुप्रास अलंकार ‘काटि–काटि’ में पुनरुक्ति प्रकाश है।
Comments